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Jayaprakash Narayan: संपूर्ण क्रांति के नायक

Jayaprakash Narayan: भारत के स्वतंत्रता संग्राम और आज़ादी के बाद की राजनीति में कई बड़े नेताओं ने अपनी छाप छोड़ी, लेकिन उनमें से एक नाम सबसे विशेष है- जयप्रकाश नारायण, जिन्हें प्यार से लोग जेपी भी कहते हैं। उन्होंने न सिर्फ़ स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान दिया बल्कि बाद में देश की राजनीति को भी नई राह दिखाई ।

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प्रारंभिक जीवन और परिचय

Jayaprakash Narayan का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार की सीमा के पास, वर्तमान उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सिताब दियारा गाँव में हुआ था। जन्म के समय, यह क्षेत्र ब्रिटिश भारत में बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। आज यह गाँव उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित है। वे नारायण श्रीवास्तव गोत्र के कायस्थ परिवार से थे। उनके पिता हरसू दयाल और माता फूलरानी देवी थी। उनके पिता राज्य सरकार के नहर विभाग में काम करते थे और अक्सर इलाके का दौरा करते थे।

जयप्रकाश नारायण का घर घाघरा नदी के किनारे था, जो अक्सर बाढ़ का शिकार होता था। हर बार जब बरसात के समय में नदी में पानी ज्यादा आता, उनके घर को नुकसान होता और अंत में उनका परिवार कुछ किलोमीटर दूर एक नई बस्ती में रहने के लिए मजबूर हो गया, जिसे आज जयप्रकाश नगर, उत्तर प्रदेश कहा जाता है।

Jayaprakash Narayan education

जयप्रकाश नारायण ने सबसे पहले अपने गाँव में पढ़ाई की। 9 साल की उम्र में उन्होंने अपना गाँव छोड़कर पटना के कॉलेजियट स्कूल में दाखिला लिया। वहाँ उन्होंने छात्रावास नारायण सरस्वती भवन में रहकर पढ़ाई की। इसी समय उनका परिचय भविष्य के नेताओं से भी हुआ। जयप्रकाश नारायण ने आगे की पढ़ाई के लिए गाँधीवादी बिहार विद्यापीठ में दाखिला लिया। 1922 में वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए। वहाँ उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय-बर्कले और विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र का अध्ययन किया।

अपनी पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए उन्होंने खेतों, कंपनियों और रेस्त्रां में काम किया। उन्होंने समाजवाद और मार्क्सवादी विचारों को समझा और एम॰ ए॰ की डिग्री हासिल की। माँ की तबीयत खराब होने की वजह से वे PHD पूरी नहीं कर पाए और भारत लौट आए।

जेपी का विवाह और उनकी पत्नी का योगदान

जयप्रकाश नारायण की शादी 17 साल की उम्र में अक्टूबर 1919 में प्रभावती देवी से हुई। जो वकील और राष्ट्रवादी नेता बृज किशोर प्रसाद की बेटी थीं। प्रभावती देवी का स्वभाव बहुत स्वतंत्र था। शादी के बाद वे गांधी जी के बुलावे पर उनके आश्रम में रहने चली गईं। इस समय जयप्रकाश नारायण अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहे। जयप्रकाश नारायण का जल्दी शादी होने के कारण भी उनकी पत्नी प्रभाववती बाधा नहीं बनी क्योंकि वे स्वतंत्र विचार की थी और वह भी एक स्वतंत्रता सेनानी थी । इसलिए जेपी अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त कर सके।

जब जयप्रकाश नारायण उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए थे तब कुछ दिनों के बाद प्रभावती महात्मा गांधी के आश्रम गयी थी और वह जेपी से पूछे बगैर ब्रह्मचर्य का संकल्प ले ली थी। जब जयप्रकाश नारायण को पता चला कि उनकी पत्नी ने ब्रह्मचर्य का संकल्प ले ली है वो भी सोच में पड़ गए थे । लेकिन बाद में उनके निर्णय का स्वागत किया। इसी वजह से उनके कोई भी संतान नहीं हुई। कई साल बाद, प्रभावती देवी को कैंसर हो गया। लंबी बीमारी से लड़ने के बाद, 15 अप्रैल 1973 को उनका निधन हो गया।

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मार्क्सवादी विचारधारा अपनाने के बाद जयप्रकाश नारायण 1929 के अंत में अमेरिका से भारत लौट आए। उसी साल, जवाहरलाल नेहरू के बुलावे पर वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए। महात्मा गांधी को उन्होंने अपना गुरु माना। पटना में वे अपने करीबी दोस्त और राष्ट्रवादी गंगा शरण सिंह के साथ रहते थे। 1930 में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें नासिक जेल भेजा गया। जेल में उनकी मुलाकात कई बड़े नेताओं से हुई, जिनमें राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, मीनू मसानी, अशोक मेहता और अन्य समाजवादी साथी शामिल थे।

जेल से निकलने के बाद कांग्रेस के भीतर एक समाजवादी धड़ा बना, जिसे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (CSP) कहा गया। इसके अध्यक्ष आचार्य नरेंद्र देव और महासचिव जयप्रकाश नारायण बने। 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया, तब जयप्रकाश नारायण ने साथियों के साथ हजारीबाग जेल से भागकर भूमिगत आंदोलन चलाया। इस दौरान वे बीमार थे, इसलिए उनके साथी योगेंद्र शुक्ला ने उन्हें कंधे पर उठाकर लगभग 124 किलोमीटर पैदल यात्रा की। इस आंदोलन में राममनोहर लोहिया और अरुणा आसफ अली जैसे कई युवा नेता भी जुड़े। इसके अलावा, जयप्रकाश नारायण ने अनुग्रह नारायण मेमोरियल फंड के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया।

भारत की आजादी में जेपी का भूमिका

वैसे तो जयप्रकाश नारायण ने भारत में आजादी के बाद ज्यादा भूमिका निभाया लेकिन आजादी से पहले भी उनके भूमिका थे। भारत छोड़ो आंदोलन के समय जयप्रकाश नारायण स्वतंत्रता संग्राम के सबसे आगे खड़े थे। उन्होंने सिर्फ भाषण नहीं दिए, बल्कि खुद मैदान में उतरकर लोगों को संगठित किया। उस दौर में अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा होना बहुत मुश्किल और खतरनाक था, लेकिन जयप्रकाश नारायण ने डरने के बजाय लोगों के दिलों में हिम्मत जगाई। वे गाँव-गाँव जाकर कहते थे कि अब आज़ादी का समय आ गया है, अब हमें मिलकर अंग्रेज़ी शासन को खत्म करना है।

उन्होंने युवाओं, किसानों और मज़दूरों को एकजुट किया और आंदोलन को मजबूत बनाया। उनकी अगुवाई ने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि अगर हम सब मिलकर खड़े हों तो आज़ादी दूर नहीं। जयप्रकाश नारायण ने इस आंदोलन को सिर्फ एक राजनीतिक लड़ाई नहीं, बल्कि देश की आत्मा को आज़ाद कराने का अभियान माना। यही वजह थी कि लोग उन्हें सिर्फ नेता नहीं, बल्कि अपना साथी और मार्गदर्शक मानते थे।

संपूर्ण क्रांति और बिहार आंदोलन

गुजरात में हुए नव निर्माण आंदोलन(1974) का असर बिहार पर भी पड़ा । गुजरात सरकार को इस्तीफा देना पड़ा, और इसी समय तक बिहार में भी छात्र आंदोलन शुरू हो गया। इस आंदोलन में अलग-अलग छात्र संगठन जुड़े थे । सभी ने मिलकर आंदोलन को ताकत दी।

  • ABVP (जनसंघ से जुड़ा संगठन)
  • एसवाईएस (समाजवादी पार्टी से जुड़ा संगठन)
  • लोकदल के छात्र संगठन
  • एआईएसएफ (कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ा संगठन)

शुरुआती घटनाएँ
1973 से ही विपक्षी दलों ने राज्यव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। 17 अगस्त 1973 को भोपाल (मध्य प्रदेश) में पुलिस की गोलीबारी में 8 छात्रों की मौत हुई। जाँच आयोग ने माना कि सरकार की कार्रवाई गलत और जरूरत से ज्यादा थी।

बिहार छात्र संघर्ष समिति (BCSS) का गठन
18 फरवरी 1974 को पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ ने एक बड़ा सम्मेलन किया। इसमें पूरे राज्य के छात्र नेता जुटे और बिहार छात्र संघर्ष समिति (BCSS) बनाई। लालू प्रसाद यादव इसके अध्यक्ष बने। सुशील कुमार मोदी, रामविलास पासवान, मोहम्मद शहाबुद्दीन, वशिष्ठ नारायण सिंह जैसे कई युवा नेता भी इसमें शामिल हुए। छात्रों की मुख्य माँगें – शिक्षा में सुधार और छात्रावासों में अच्छा खाना उपलब्ध कराना था ।

आंदोलन तेज हुआ,18 मार्च 1974 को विधानसभा का घेराव किया गया। छात्रों ने सड़कों को जाम किया और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुँचाया। पुलिस कार्रवाई में 3 छात्रों की मौत हो गई। इससे पूरे बिहार में आंदोलन और तेज हो गया। 23 मार्च को राज्यव्यापी हड़ताल की घोषणा हुई।

जयप्रकाश नारायण (जेपी) का नेतृत्व ने पहले गुजरात का दौरा किया और वहाँ के आंदोलन को देखा। 30 मार्च 1974 को उन्होंने घोषणा की कि वे बिहार आंदोलन का नेतृत्व करेंगे। बिहार छात्र संघर्ष समिति ने उनसे औपचारिक रूप से नेतृत्व करने का आग्रह किया, और जेपी ने हाँ कह दिया।

इंदिरा गांधी की प्रतिक्रिया
1 अप्रैल 1974 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा – “जो लोग पैसेवालों से मदद लेते हैं, वे भ्रष्टाचार की बात कैसे कर सकते हैं?” 8 अप्रैल को पटना में 10,000 छात्रों का मौन जुलूस निकाला गया। 12 अप्रैल को गया में पुलिस गोलीबारी में कई आंदोलनकारी मारे गए। आंदोलनकारी अब विधानसभा भंग करने की मांग करने लगे।

संपूर्ण क्रांति आंदोलन (1974)
5 जून 1974 को जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने पटना की एक बड़ी रैली में लोगों से आह्वान किया कि वे बिहार विधानसभा के सामने विरोध करें। इसके बाद सरकार ने 1 जुलाई तक 1,600 आंदोलनकारियों और 65 छात्र नेताओं को गिरफ्तार कर लिया।जेपी ने युवाओं से कहा कि वे सिर्फ पढ़ाई तक सीमित न रहें बल्कि सामाजिक बदलाव के कामों में भी भाग लें। इसी विचार को उन्होंने “संपूर्ण क्रांति” (Total Revolution) का नाम दिया।

आंदोलन की गतिविधियाँ
15 जुलाई को कॉलेज और विश्वविद्यालयों में विरोध प्रदर्शन हुए और कई संस्थान बंद कर दिए गए । बाद में कुछ कॉलेज खुले और परीक्षाएँ हुईं, लेकिन जेपी ने छात्रों से परीक्षाओं का बहिष्कार करने को कहा । कई छात्र फिर भी परीक्षाओं में बैठे । 3 अक्टूबर से तीन दिन का राज्यव्यापी हड़ताल हुआ । 6 अक्टूबर को जेपी ने एक विशाल जनसभा को संबोधित किया । 4 नवंबर को जेपी ने विधायकों से इस्तीफ़े की मांग की ।

इससे पहले ही 318 में से 42 विधायकों ने इस्तीफ़ा दिया, जिनमें से 33 विपक्षी दलों के थे । बाकी विधायकों ने इस्तीफ़ा देने से इंकार कर दिया । सरकार ने आंदोलनकारियों को पटना पहुँचने से रोकने के लिए लाठीचार्ज भी किया।

इंदिरा गांधी से टकराव और जनता पार्टी
18 नवंबर को पटना में एक बड़ी सभा में जेपी ने इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार को खुलकर चुनौती दी । पहले वे पार्टी-विहीन लोकतंत्र (बिना राजनीतिक पार्टी के शासन) की बात करते थे, लेकिन बाद में उन्होंने समझा कि लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर रहकर ही लड़ाई लड़ी जा सकती है । इसी कारण उन्होंने विपक्षी दलों से संपर्क किया । यही प्रयास आगे चलकर जनता पार्टी के गठन का कारण बना। बिहार आंदोलन धीरे-धीरे सत्याग्रह में बदल गया।

4 दिसंबर 1974 से आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी शुरू हुई । इंदिरा गांधी ने बिहार के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर को नहीं बदला, क्योंकि वे विधानसभा भंग करने की मांग के आगे झुकना नहीं चाहती थीं (जैसा गुजरात में हुआ था)।

जेपी की भूमिका और गुजरात चुनाव
जेपी पूरे देश में घूमकर विपक्षी दलों को एकजुट करने का काम करते रहे । गुजरात में चुनाव टाला गया, लेकिन जब मोरारजी देसाई ने भूख हड़ताल की, तो चुनाव कराना पड़ा । 10 जून 1975 को चुनाव हुआ और 12 जून को परिणाम आया – कांग्रेस हार गई।

बिहार में बदलाव
बिहार में जनता पार्टी की जीत के बाद मुख्यमंत्री की लड़ाई हुई। इसमें कर्पूरी ठाकुर, सत्येंद्र नारायण सिन्हा को हराकर 1977 में बिहार के मुख्यमंत्री बने।

संपूर्ण क्रांति आंदोलन की सफलता
राष्ट्रीय चेतना जागी- जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर देशभर के छात्र, युवा और आम लोग एक साथ खड़े हुए । इससे लोगों में बदलाव की चाह और राजनीति को समझने की जागरूकता पैदा हुई। कांग्रेस सरकार को सत्ता से हटाया, इस आंदोलन के दबाव और आपातकाल के बाद हुए चुनावों में इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार को हार का सामना करना पड़ा ।

आपातकाल(1975 से 1977) में jai prakash narayan का भूमिका

1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि इंदिरा गांधी ने चुनावी नियमों का उल्लंघन किया है । इस फैसले के बाद जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने इंदिरा गांधी और सभी मुख्यमंत्रियों से इस्तीफ़ा देने की मांग की। उन्होंने सेना और पुलिस से भी अपील की कि वे किसी भी ग़ैर-कानूनी या अनैतिक आदेश का पालन न करें । जेपी पहले से ही “संपूर्ण क्रांति” (कुल क्रांति) का नारा दे चुके थे, जिसमें समाज को पूरी तरह बदलने का सपना था ।

आपातकाल की घोषणा

इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की आधी रात को पूरे देश में आपातकाल लागू कर दिया। उस रात ही विपक्षी दलों के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया । जेपी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख से ज़्यादा लोगों की भीड़ को संबोधित किया था। उस मंच से उन्होंने राष्ट्रकवि दिनकर की प्रसिद्ध पंक्ति पढ़ी: “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। यह नारा पूरे देश में गूंज उठा।

जेपी की गिरफ्तारी और तबीयत बिगड़ना

Jai Prakash Narayan को चंडीगढ़ की जेल में रखा गया । उन्होंने बिहार के बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए एक महीने की पैरोल मांगी, लेकिन सरकार ने नहीं मानी । 24 अक्टूबर 1975 को अचानक उनकी तबीयत बहुत बिगड़ गई । बाद में 12 नवंबर को उन्हें रिहा कर दिया गया । मुंबई के जसलोक अस्पताल में जांच के बाद पता चला कि उनकी किडनी खराब हो चुकी है और उन्हें जीवनभर डायलिसिस पर निर्भर रहना पड़ेगा ।

‘फ्री जेपी’ अभियान

ब्रिटेन में “सुरूर होदा” नाम की सामाजिक कार्यकर्ता ने जेपी की रिहाई के लिए “Free JP अभियान ” शुरू किया। इस अभियान का नेतृत्व नोबेल शांति पुरस्कार विजेता फिलिप नोएल-बेकर ने किया। यह आंदोलन दुनिया के सामने भारत में लोकतंत्र पर हो रहे हमलों को उजागर करने वाला साबित हुआ ।

आपातकाल का अंत और जनता पार्टी

18 जनवरी 1977 को इंदिरा गांधी ने आपातकाल हटाने का ऐलान किया और चुनाव की घोषणा की । जेपी के मार्गदर्शन में अलग-अलग विपक्षी दलों को मिलाकर जनता पार्टी बनाई गई। जनता पार्टी ने चुनाव जीता और भारत में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। 1977 के राष्ट्रपति चुनाव में जनता पार्टी ने जेपी का नाम राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित किया, लेकिन उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है और वे राजनीति में कोई पद नहीं चाहते । इसके बाद नीलम संजीव रेड्डी भारत के राष्ट्रपति बने।

जेपी को मिले सम्मान और विरासत

jai prakash narayan को मिले कुछ प्रमुख पुरस्कार

  • भारत रत्न (1999, मरणोपरांत): यह भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। जेपी को यह पुरस्कार सार्वजनिक सेवा और देश के लिए उनके योगदान के लिए दिया गया।
  • राष्ट्रभूषण पुरस्कार (एफआईई फाउंडेशन, इचलकरंजी): उन्हें समाज और राष्ट्र के लिए किए गए कामों की सराहना में यह सम्मान मिला।
  • रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1965): यह एशिया का बहुत बड़ा सम्मान है। जेपी को यह पुरस्कार सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र में दिया गया।

jai prakash narayan की मृत्यु

मार्च 1979 में, जब जेपी अस्पताल में थे, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने गलती से उनकी मृत्यु की घोषणा कर दी।इसके बाद पूरे देश में शोक की लहर फैल गई – संसद बंद हो गई, रेडियो प्रसारण रुके, स्कूल और दुकानें बंद हो गईं । कुछ हफ्तों बाद जब जेपी को इस गलती के बारे में बताया गया, तो वे मुस्कुराए। जेपी का निधन 77 साल की उम्र में 8 अक्टूबर 1979 को पटना, बिहार में हुआ। मौत का कारण मधुमेह और हृदय रोग था।

जयप्रकाश नारायण के नाम पर रखे गए स्थल और संस्थान

  1. पटना में जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा
  2. लोकनायक एक्सप्रेस – 1 अगस्त 2015 को छपरा-दिल्ली-छपरा ट्रेन का नाम उनके सम्मान में रखा गया।
  3. जेपी सेतु (दीघा-सोनपुर पुल) – बिहार में गंगा नदी पर रेल और सड़क का पुल।
  4. जयप्रकाश नगर (जेपी नगर), बैंगलोर – एक आवासीय क्षेत्र।
  5. जयप्रकाश नगर (जेपी नगर), मैसूर – एक और आवासीय क्षेत्र।
  6. लोकनायक अस्पताल, नई दिल्ली – अस्पताल।
  7. लोकनायक जयप्रकाश नारायण राष्ट्रीय अपराध विज्ञान एवं फोरेंसिक विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली – महाविद्यालय।
  8. लोकनायक जयप्रकाश इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, छपरा, बिहार – इंजीनियरिंग कॉलेज।

FAQ

Q. who is jayaprakash narayan
Ans-
socialist leader and revolutionary

Q. who started total revolution
Ans-
जयप्रकाश नारायण

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